एंग्लो-इंडियन भारत के सदन में-
भारत लोकतांत्रिक गणराज्य है जहां निः पक्ष निर्वाचन से संसद लोकसभा, राज्यसभा और विधानमंडलों के सदस्य चुना जाता है।
1947 में भारत की आजादी के बाद भी हुआ अंग्रेजीयत समाप्त नहीं हुआ था। "एंग्लो-इंडियन" भारत में बिना चुनाव लड़े लोकसभा और विधानसभा सदस्य के लिए नामांकित होते रहे हैं।
एंग्लो-इंडियन कौन है?
भारत की स्वतन्त्रता के पूर्व अंग्रेजों का शासन था। स्वतन्त्रता पश्चात् कुछ अंग्रेज जो व्यवसाय करने वाले थे या नौकरी करते थे वे भारत में ही रहने का निर्णय लिया और भारतीय महिलाओंं से विवाह कर भारत में ही बस गए, इसकी संताने "एंग्लो-इंडियन" कहलाए। इसकी संस्कृति अंग्रेजी विचार धारा और रहन सहन से प्रभावित है।
संविधान के अनुच्छेद 331 में प्रावधान -
छ्त्तीसगढ के बिलासपुर क्षेत्र, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में एंग्लो-इंडियन की संख्या अधिक है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 331 में ऐसा प्रावधान है कि एक समुदाय विशेष को लोकसभा और विधानसभा में आरक्षण देता है जिसके अनुसार राष्ट्रपति और राज्यपाल के सहमति से लोकसभा और विधानसभा के लिए एक-एक सदस्य नामांकित कर सकता है।
26 जनवरी 1950 को संविधान लागु हुआ तब "एंग्लो-इंडियन" को 10 वर्षों के लिए आरक्षण का प्रावधान था जिसे बार बार संशोधन करते हुए वर्ष 1952 से लेकर 2020 तक बढ़ाया जाता रहा।
किन प्रदेशों से एंग्लो-इंडियन नामांकित होता है -
छत्तीसगढ़, अन्ध्रप्रदेश , गुजरात, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, प्रदेशों से लोकसभा के लिए नामांकित किये जाते रहे हैं।
छत्तीसगढ़ से नामांकित होने वाले सदस्य -
छ्त्तीसगढ से नामांकित होने वाले सद्स्यों में ईग्रीड मेक्लाउड, रोजलिन बेकमेन, बर्नार्ड रॉड्रिग्ज शामिल हैं।
एंग्लो-इंडियन आरक्षित सीटों का समापन -
2011 के जनगणना को आधार मानते हुए "एंग्लो-इंडियन" समुदाय के लोकसभा, विधानसभा के आरक्षण को जनवरी 2020 में, 104 वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 द्वारा भारत की संसद और राज्य विधानमंडलों में एंग्लो-इंडियन आरक्षित सीटों को समाप्त कर दिया गया।
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