।। श्री ।।
जय जय श्री गणराज, विद्या सुख दाता ।
धन्य तुम्हारो दर्शन, मेरे मन रहता ।।
हाथ लिये गुड़ लड्डू, अच्छे मुख गज को ।
दन्त विशाल विराजे , सुत हर गौरी को।।
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, संकट के बैरी ।
विघ्न विनाशक मंगल, मूरति अधिकारी ।।
कोटिक सूर्य प्रकाश कियो है, ऐसो छबिधारी ।
घंटा झूले मस्तक भाले , चंदा शुभकारी ।।
उत्तम तुम्हरो दर्शन , गज विशाल मूरति ।
कुम- कुम चन्दन अक्षत, पुष्पम अधिकारी ।।
ऐसो तुम महराज मोको, अति नित तुम भावो ।
गोकुल में कुल नंदन, निशि दिन गन गावो ।।
काशी में एक ब्राम्हण, नंदा ब्रम्हचारी ।
नित उठ भोग लगावे, महिमा अति भारी।।
श्री गणराज जी की आरती जो कोइ जन गावे।
कहत नंद ब्रम्हचारी इक्षित फल पावे।।
जय जय श्री गणराज, विद्या सुख दाता ।
।।श्री गणेश जी महराज की जय ।।
११-०९-१९५९ भाद्रपद सुदी -०८, २०१६ के साल
कलानाथ ताम्रकार करेली वाले , धमधा
