भारत की जनगणना 1872 में पहली बार ब्रिटिश वायसराय के अधीन पहली बार कराई गयी थी। अब तक 15 बार हो चुका है।
भारत में प्रति 10 वर्ष में जनगणना होती है। 2011 में जनगणना हुई थी। covid 19 के कारण 2021 में होने जनगणना नहीं हो पाई है। जनगणना से देश की जनसंख्या की वास्त्विक जानकारी मिलती है, जाति, धर्म, आर्थिक स्थिति, शिक्षा, और अन्य सामाजिक और आर्थिक पैरामीटर्स का अनुमान लगाने में मदद करती है। जनगणना का कार्य दो चरण में होता है जिसमें अलग अलग विभागो के 30 लाख से अधिक कर्मचारी भाग लेते हैं। इसके अलावा आर्थिक, जातिगत, पिछड़ा वर्ग, आदि प्रकार के गणना आवश्यकता के अनुसार कराया जाता है। जनगणना कार्य डोर टू डोर सर्वे किया जाता है जो बहुत खर्चिला होता है।
डेटा (आंकड़ा) बेस्ड जनगणना क्या है?-
पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार कार्ड, बैंक पासबुक, पासपोर्ट आदि से प्राप्त जानकारी को डेटा बेस्ड कहा जाता है जिसके आधार पर जनगणना किया जाए।
न्यूजीलैंड एक ऐसा दश है जो जनगणना के इस खर्च से बचने के लिए डेटा बेस्ड जनगणना करने जा रहा है। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार डोर टू डोर परंपरागत सर्वे के स्थान पर् डेटा बेस्ड आधार जो टैक्स, समाज कल्याण, न्याय विभाग जैसी विभागों से आंकड़ा एकत्रित किया जाएगा। न्यूजीलैंड में प्रत्येक 5 वर्ष में जनगणना किया जाता है। जो 2028 में होगा।
क्या भारत में भी इस प्रकार की जनगणना होगी-
समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार के अनुसार भारत में भी जनगणना के इस प्रकार के तरीका ढूंढा जा रहा है जिसमें सांख्यिकीय विभाग शासकीय विभागों से डेटा कलेक्शन किया जा सकता है। जिसमें आधारकार्ड, राशन कार्ड, पैन कार्ड, आयुष्मान कार्ड, मनरेगा कार्ड, बैंक पासबुक ड्राइविंग लायसेन्स आदि से डेटा का उपयोग किया जा सकता है।
डेटा आधारित जनगणना के लाभ -
इस प्रकार के जनगणना से डोर टू डोर परंपरागत सर्वे से होने वाले भारी भरकम खर्च से बचा जा सकता है, तथा इस राशि का उपयोग देश के विकास कार्य में लगाया जा सकता है।
डेटा आधारित जनगणना के हानि -
इस प्रकार के जनगणना से अनेकों लोग गणना से वंचित हो सकता है जिससे मूल भारतीय होकर भी भारतीय नहीं रहेगा।
लोकसभा चुनाव 2024 में कितनी धनराशि खर्च किया जा सकता है:
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