गिलोय एक लता वर्गी पौधा है जिसकी लताएं हमारे आसपास बगीचों और पेड़ों पर फैली हुई दिखाई दे जाती है। इसके पत्ते पान के पत्ते की तरह बड़े-बड़े दिखाई देते हैं इसकी पतली लता हरी और मोटी होने के बाद हल्का भूरा रंग का हो जाता है वैसे तो गिलोय की लताएं है किसी भी पेड़ पौधे में फैल जाती है लेकिन नीम पेड़ के ऊपर फैली हुई गिलोय की लताओं को श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि गिलोय की लताओं में नीम का गुण आ जाता है, इसे गुडुच, गुडुची भी कहते हैं।
गिलोय में गिलोस्ट्राल ग्लूकोसाइड ग्लोइन और गीलोईनीन नमक अल्कलाइन जैसे औषधि गुण है जिसके कारण आयुर्वेद में इसकी इसकी अनेक प्रकार की दवाइयां बनाकर स्वास्थ्य रक्षा के लिए किया जाता है।
प्रतिदिन इसके सेवन से बुखार फ्लू, डेंगू मलेरिया पेट में कीड़े होने की संभावना, ब्लड प्रेशर हार्ट प्रॉब्लम्स एलर्जी डायबिटीज और स्कीन की बीमारियों से भी राहत मिलती है गिलोय के पत्तों का रस और गिलोय सत्व बीमारियों से लडऩे, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है।
1* ह्रदय रोग - गिलोय उच्च कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए, शर्करा का स्तर बनाए रखने में मदद करता है- यह शरीर को दिल से संबंधित बीमारियों से बचाए रखता है।
2* पीलिया - गिलोय की बेल गले में लपेटने से भी पीलिया में लाभ होता है गिलोय के काढ़े में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया या गिलोय के पत्तों को पीसकर एक गिलास मट्ठा में मिलाकर सुबह सुबह पीने से पीलिया ठीक हो जाता है
3* वात - गिलोय का चूर्ण शहद और सोंठ के साथ खाने से कफ एवं साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है-गैस-जोडों का दर्द-शरीर का दर्द कम होता है।
4* चेहरे का दाग - मुंहासे-फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे-फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।
5* बार बार चक्कर आना - गिलोय और पुनर्नवा मिर्गी में लाभप्रद होती है इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों के साथ दिया जाता है बार बार चक्कर आने पर भी रस का सेवन किया जा सकता है।
गिलोय का उल्टी-बेहोशी-कफ-पीलिया-धातू विकार-सिफलिस-एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार-चर्म रोग-झाइयां-झुर्रियां-कमजोरी-गले के संक्रमण-खाँसी-छींक-विषम ज्वर नाशक है। आयुर्वेद में दीर्घायु प्रदान करने वाली 'अमृत तुल्य' माना गया है।
source.
पारिजात(हरसिंगार) के औषधिय एवं धार्मिक महत्व

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