Sunday, March 24, 2024

अघोरियों द्वारा चिताभस्म से खेली जाती है श्मशान में होली

   होली का त्योहार आते ही हमारे मन में उमंग, उत्साह, वात्सल्य, प्रेम, अनुराग जैसे रस रंगों की बौछार हमारी स्मृति पटल पर छा जाती है।  होली उत्सव की जब भी चर्चा होती है हमें श्री कृष्णा राधा और सखियों की होली "बरसाने" की याद आने लगती है।

   होली का त्योहार पूरे भारतवर्ष में अलग-अलग स्थान पर अपनी संस्कृति और परंपराओं के अनुसार मनाया जाता है  इनमें बरसाने की होली होलिका दहन के 7 दिन पूर्व से ही प्रारंभ हो जाती है  जहां श्री कृष्णा और राधा के संग सखियों और सखाओं की होली तथा "बरसाने की लट्ठमार होली" अति प्रसिद्ध है।

    अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के द्वारा खेली गई होली का भी वर्णन मिलता है इस पर फिल्मी गाना भी बना हुआ है "होली खेले रघुवीरा अवध में होली खेले रघुवीरा" ऐसे ही फिल्मी एवं आंचलिक गीत हमारे मन के उत्साह को प्रदर्शित करता है।

  इन सबसे अलग होलीकोत्सव देवों के देव "महादेव" शिव शंकर भोले की होली है जिन्हें रंगों के स्थान पर भांग धतूरा जैसे अन्य शीतल पदार्थ से अभिषेक किया जाता है और अबीर-गुलाल के स्थान पर भस्म लगाया जाता है । यह भस्म चिताओं की राख होती है।  उज्जैन के महाकाल को भस्म से अभिषेक कर भस्म आरती किया जाता है।


 "शिव की होली" को "मशान होली" कहते हैं। होली से पहले बनारस के श्मशान में अघोरियों द्वारा खेली जाती है। शिव नटराज है और प्रथम योगी भी और प्रथम अघोरी भी। अघोर होने का अर्थ है- किसी भी वस्तु से  न ईर्ष्या न घृणा होना चाहे वो जीवन का स्पंदन हो या मृत्यु की वेदना। 

     जैसे एक बच्चा जब जन्म लेता है तब वो अघोरी होता है। उसके लिए किसी भी वस्तु से घृणा नहीं, कुछ भी त्याज्य नहीं होता। मां के गर्भ में बच्चा अपने शरीर में मल लपेट कर खेल सकता है, उसे खा सकता है, अपने मूत्र में सो सकता है। वह अपनी मृत माँ के स्तन से दूध पीकर अपनी भूख मिटा सकता है। 

   शिव को देव दानव असुर राक्षस मानव सब पूजते हैं। उन्हें बिना भेदभाव के सब स्वीकार है। शिव के लिए जिंदा और मरे हुए शरीर में कोई अंतर नहीं है। शिव के लिए एक सजी-सँवरी देह और एक मृत सड़े हुए शरीर में कोई भेद नहीं है। प्रेम, ईर्ष्या, पवित्र, अपवित्र जैसी मानवीय मान्यताओं से परे है।

  शिव को कुछ भी अर्पण कर दो, वो सब लेते है, दूध, छप्पन भोग या भांग, धतूरा। शिव अपने भक्त के भक्ति से प्रसन्न होता है। शिव विनाशक भी है और विनाश रोकने वाला भी।

    जय मृत्युंजय   

नमानी शमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेद: स्वरुपम् । 

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश मकाशवासं भजेऽहम् ।













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