कश्मीर में होने वाला "केसर" छत्तीसगढ़ में उत्पादन होने लगे तो आश्चर्य होगा। लेकिन कोई करने की ठान ले तो वह पूरा हो ही जाता है। जिस प्रकार मशरूम का उत्पादन 100 वर्ग फीट के कमरे में किया जा सकता है उसी प्रकार केसर का उत्पादन 200 वर्ग फीट के कमरे से किया गया।
छत्तीसगढ़ में केसर की खेती वाकेश साहू की रिपोर्ट के अनुसार सरायपाली के किसान मनमोहन नायक ने केसर की खेती प्रारम्भ किया है ।
इसके लिए उन्होंने भांठागांव में एक फार्म हाउस में वातानुकुलित कमरा तैयार कर केसर की खेती प्रारंभ किया।
यहां केसर को मिट्टी में नहीं बल्कि हवा में उगाया जा रहा है जिसे एयरोपोनिक्स विधि कहा जाता है।
नायक के अनुसार केसर की खेती पिछले साल अगस्त में शुरू की थी। कश्मीर से 6 क्विंटल केसर बीज खरीद कर लाये फिर इन बीजों को वातानुकुलित कमरे में रखा। खेती के लिए 500 से अधिक लकड़ी और प्लास्टिक् ट्रे का इस्तेमाल किया गया है प्रत्येक में लगभग 150 बीज रखे गए।
अक्टूबर नवंबर में केसर में फूल आना प्रारंभ हुआ कमरे का तापमान 26 डिग्री सेंटीग्रेड तक रखा गया था। कमरे का तापमान कश्मीर के तापमान के स्तर के अनुसार इसे कम करते हुए 5 डिग्री सेंटीग्रेड तक लाया गया। लगभग डेढ़ किलो केसर उत्पादन हुआ।
कमरे में नमी का स्तर लगभग 85% रखना होता है कमरे को कश्मीर जैसे तापमान हवा नमी रोशनी को केसर के पौधों की जरूरत के हिसाब से कंट्रोल किया।
केसर को जुलाई अगस्त में बोया जाता है जिसमें अक्टूबर नवंबर तक फूल निकल आते हैं प्रत्येक बीज में एक या दो या तीन फुल निकलते हैं जिसका हर हिस्सा कीमती होता है। फूलों की बैगनी नीली पंखुड़ियों का उपयोग अगरबत्ती बनाने में किया जाता है। लाल नारंगी वर्तिकाओं को ही केसर कहा जाता है ।
किसान मनमोहन के अनुुसार केसर के एक बीज से 5 साल तक फसल ली जा सकती है ।
उत्पादित केसर को प्रमाणित कराने के लिए "शेर ए कश्मीर" कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय भेजा गया है। मनमोहन नायक बताया कि वातानुकुलित कक्ष बनाने पर लागत के हिसाब से पहले साल में मुनाफा नहीं हुआ। यदि उत्पादित केसर प्रमाणित हो जाता है तब अगले फसल में लाभ अवश्य होगा।
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